Friday, August 27, 2010

कुछ तो ऐसा करें ज़माने में..

कुछ तो ऐसा करें ज़माने में
वक़्त लग जाए हमें भुलाने में
काम आसाँ नहीं चलो माना
हर्ज़ क्या है आज़माने में

अब कोई ताज नहीं बनाना है
न ख्यालों में कोई खज़ाना है
किसी भूले को रास्ता मिल जाए
लुत्फ़ है हंसने और हंसाने में

हर तरफ खुशियों की बहारे हों
चैन हो दिल में सुकून आँखों में
एक ऐसा जहाँ जो बन पाए
"दीप" अफ़सोस नहीं जलजाने में

कुछ तो ऐसा करें ज़माने में ....

6 comments:

  1. कुछ तो ऐसा करें ज़माने में
    वक़्त लग जाए हमें भुलाने में
    अच्छी पंक्तिया है .....
    http://oshotheone.blogspot.com/

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  2. लुत्फ़ है हंसने और हंसाने में.

    सच कहा....जीवन में उतार लेने जैसी पंक्तियाँ हैं...बहुत प्रेरक रचना...काश हम सब इसे दिल में बिठा लें...
    नीरज

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  3. बहुत खूब लिखा है जी,

    काम आसाँ नहीं चलो माना
    हर्ज़ क्या है आज़माने में

    बहुत अच्छे।

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