हाँ ये सच है की गिर के सम्हल जाते हैं
कोई कम कोई ज्यादा बदल जाते हैं
वक़्त और दूरियों से ये हल्के सही
पर कहीं रंग मोहब्बत के धुल जाते हैं
कुछ पुरानी से यादें उभर आती हैं
फिर वही सारे अरमाँ मचल जाते हैं
तेरी खुशबू से लगता है तू हैं यहीं
हम अँधेरे में कुछ दूर चल जाते हैं
साथ गुजरे दिनों की जो आती है याद
इस कदर दीप अब भी तड़प जाते हैं
इस भरम में की आगे तू मिल जाएगी
हम अकेले सड़क पर निकल जाते हैं
bahut badhiyaa .ek baar phr padhkar badhiyaa laga
ReplyDeletehmmm.kya bat h.bahut badhiyaaaaa
ReplyDeleteits too gud :)
ReplyDeleteक्या बात है दीप साहब आप के शब्दों में...बहुत जान है |
ReplyDeleteराजेश सिंह
मुंबई
bahut hi sundar hai
ReplyDeletebahut hi acchi rachana hai...