Monday, August 16, 2010

रंगे मोहब्बत..

हाँ ये सच है की गिर के सम्हल जाते हैं
कोई कम कोई ज्यादा बदल जाते हैं
वक़्त और दूरियों से ये हल्के सही
पर कहीं रंग मोहब्बत के धुल जाते हैं

कुछ पुरानी से यादें उभर आती हैं
फिर वही सारे अरमाँ मचल जाते हैं
तेरी खुशबू से लगता है तू हैं यहीं
हम अँधेरे में कुछ दूर चल जाते हैं

साथ गुजरे दिनों की जो आती है याद
इस कदर दीप अब भी तड़प जाते हैं
इस भरम में की आगे तू मिल जाएगी
हम अकेले सड़क पर निकल जाते हैं

5 comments:

  1. bahut badhiyaa .ek baar phr padhkar badhiyaa laga

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  2. hmmm.kya bat h.bahut badhiyaaaaa

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  3. क्या बात है दीप साहब आप के शब्दों में...बहुत जान है |



    राजेश सिंह
    मुंबई

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