चाहत की ख्वाइश तो थी ही नहीं
पहेले कभी वो मिली ही नहीं
बस मुस्कराहट के कायल थे हम
फिर होंटों पे उसके खिली ही नहीं
कई रोज़ बीते मुलाकात को
ये हसरत तो अब तक मिटी ही नहीं
कहीं इसका तूफाँ इरादा न हो
ये हलचल जो अबतक थमी ही नहीं
इशारा तो उसने किया था जरूर
पर दूर जाकर मुड़ी ही नहीं
ये मौसम ही शायद रहा बेरुखा
हवाओं में बिलकुल नमी ही नहीं
वो किस्सा बाज़ारों में हर शाम आम
कहानी जो अबतक बनी ही नहीं
मोहब्बत नहीं वो तो एक ख्वाब था
ज़माने ने मेरी सुनी ही नहीं
kyaa baat hai bahut khoob
ReplyDeletewaah....kamal ji kamaaal hai
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