एक अनजानी अजनवी सी आस है ज़िन्दगी
कभी खुद से दूर कभी पास है ज़िन्दगी
बस कहने को खड़े हैं हम दरिया के किनारे
पल पल बढती हुई प्यास है ज़िन्दगी
इस तपती हुई धूप में कोई कितना चलेगा
मंजिलों के हैं सिलसिले और तलाश है ज़िन्दगी
अपने और कितने बेगाने हैं यहाँ
उलझे हुए रिश्तों का जाल है ज़िन्दगी
हांसिल नहीं जिनको एक पल का सुकून
कहते हैं वो खूबसूरत ख्याल है ज़िन्दगी
नादाँ हैं वो दीप जिनको सबकुछ पता है
लम्हा दर लम्हा एक कयास है ज़िन्दगी
* कयास = अंदाज़ा = अनुमान = Guess
great ...
ReplyDeleteइस तपती हुई धुप में कोई कितना चलेगा
ReplyDeleteमंजिलों के हैं सिलसिले और तलाश है ज़िन्दगी
shandaar 8/10 aapke liye
bahut khoob...kya battt
ReplyDelete