
हसरत कितनी बार रही
कुछ मेरी किस्मत तुम ठहरी
जब भी हद के पार रही
सुवह को मिलने की खातिर
हम रात नहीं सो पाते थे
फिर दिन निकले मायूसी में
ना जाने कितनी रात हुई
दो दिलों ने हामी भर दी थी
इस सच से तुम अनजान नहीं
फिर दुनिया रस्म रिवाजों की
तुमको कब से परवाह हुई
कुछ तो था मालूम तुम्हे
हम भी तो कहने वाले थे
अफ़सोस रहा बेरुखी से क्यों
ये ख़त्म कहानी यार हुई
हाँथ बढाकर रोकू तुझको
हसरत कितनी बार रही ...
हाँथ बढाकर रोकू तुझको
ReplyDeleteहसरत कितनी बार रही ...
बहुत सुंदर रचना,,,अच्छी प्रस्तुति,,,,
दीप जी,.,,समर्थक बन गया हूँ आपभी बने तो खुशी होगी,,,,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
दो दिलों ने हामी भर दी थी
ReplyDeleteइस सच से तुम अनजान नहीं
फिर दुनिया रस्म रिवाजों की
तुमको कब से परवाह हुई
Shaandaar Rachana...
अद्भुत...दिल को छूती मार्मिक रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteभीतर तक जाती है कविता.
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