Saturday, December 11, 2010

लाज

आज की शीला की कहानी
नयी अदा में बात पुरानी
घबराना कैसा फिर यारों
जब इंग्लिश पढने की ठानी

तेज़ जमाना जल्दी पाना
ठुमका तो मारेगी रानी
नज़र झुकाए खड़ी रही तो
वक़्त कहाँ जो देखे जानी

कहना उसका बुरा नहीं है
सोंच समझकर हमने मानी
जहाँ सभी हो पीनेवाले
कहाँ बिकेगा लाज का पानी

Thursday, December 9, 2010

देखा था हमने

धुंधली यादों में कुछ ,साये
बदले मौसम जब याद आये
कहने की तो बात नहीं है
हम सब हैं कुछ खोते आये

तेज़ भागती दुनिया में सब
आगे पीछे होते जाएँ
वक़्त कहीं तो चला गया वो
चलते थे जब साथ में साये

ऐसे ही
बदलेगी दुनिया
बदलेंगे सब रिश्ते नाते
हाँ लेकिन देखा था हमने
जो रह रह कर याद है आये

Friday, October 1, 2010

सीखा है हमने..

सीखा है हमने तो खुद को जला के
नफरत के हरेक रस्ते पे जाके
चिंगारियां अब भड़क न सकेंगी
मोहब्बत की पुरजोर वारिश में आके

कहे कोई अल्लाह या इश्वर बुलाले
सुनेगा उसी की जो दिल से पुकारे
लड़के अगर कुछ बना भी लिया तो
मुश्किल है उसमे वो बैठेगा आके

मंदिर बनाले या मस्जिद बनाले
थोड़ी सी दिल में जगह गर बनाले
इंसानियत की यूँ शम्मा जलाके
क्यों न खुदा को दिलों में बसा ले

Thursday, September 2, 2010

मेरे श्याम..

मालिक तेरे कितने नाम
राधा किशन कन्हैया राम
प्रेम की महिमा दिखलाने को
जन्मे जाकर मथुरा धाम

कहते हो आओगे तब तब
धर्म का होगा जब जब काम
फिर बोलो कब होगा मिलना
सच्चाई अब ढलती
शाम

कंस कई हैं आज यहाँ पर
भ्रष्टाचारी और बेईमान
प्रेम पे अब तो सज़ा बड़ी है
पंचायत दे मौत इनाम

देखे सुने जाए अब तो
होते हरदिन ऐसे काम
वस्त्र हरण तो आम बहुत है
माँ लेती बच्चे की जान

कलियुग में बाक़ी है अब कुछ
और नहीं अब लगता श्याम
जाओ इससे पहले की
दुनिया भूले तेरा नाम

Monday, August 30, 2010

आजादी..

कुछ किताबों ने हमे बताया था
वतन का मेरे हाल सुनाया था
ग़जब के लोग यहाँ पे रहते थे
दास्ताँ सुनके मन भर आया था

अक्ल के तेज़ हुनर में अव्वल बड़े बहादुर थे
बात, जुबान और ईमान पे मरने वाले थे
एक मजहब था
हिंदुस्तान कौन पराया था
बड़ी कुर्बानी देके ऐसा मुल्क बनाया था

आज कुछ खास नहीं दिखता है चारो ओर यहाँ
मस्त सब खुद में किसको परवाह पहुंचा देश कहाँ
यहीं आने को क्या गाँधी ने हमे चलाया था
क्या रानी झाँसी ने ख्वाब यही सजाया था

जश्ने आजादी था फिर आज, मैं देख के आया था
"दीप" उस चौराहे से एक तिरंगा लाया था
रात की रोटी है तोहफे में इस आजादी पे
बड़े छोटे हांथों ने झंडा बेंच के खाया था


Friday, August 27, 2010

कुछ तो ऐसा करें ज़माने में..

कुछ तो ऐसा करें ज़माने में
वक़्त लग जाए हमें भुलाने में
काम आसाँ नहीं चलो माना
हर्ज़ क्या है आज़माने में

अब कोई ताज नहीं बनाना है
न ख्यालों में कोई खज़ाना है
किसी भूले को रास्ता मिल जाए
लुत्फ़ है हंसने और हंसाने में

हर तरफ खुशियों की बहारे हों
चैन हो दिल में सुकून आँखों में
एक ऐसा जहाँ जो बन पाए
"दीप" अफ़सोस नहीं जलजाने में

कुछ तो ऐसा करें ज़माने में ....

Tuesday, August 17, 2010

ये कवि..


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

देश की राजकुमारी का स्वयंवर था रचा
नौजवां देश के कवियों में था कुछ शोर मचा
ये शर्त थी की जो कविता को वो पसंद करे
उसी कविता के रचयिता से वो शादी भी करे
और तारीफ जो पसंद उसे आई नहीं
कवि समझे की कभी ज़िन्दगी थी पायी नहीं
अपनी तारीफ को सुनने का ढंग निराला था
कई कवियों का आज उसने दम निकाला था
मेरे हिस्से में भी पर्ची तो एक आई थी
कवि के नाम की तख्ती जो कल लगायी थी
बड़ी हिम्मत के साथ हम तो यहाँ आये थे
मगर हालात देख कर बड़ा पछताए थे
अब एक बार उन्हें देखने की ख्वाइश थी
मौत तो आज मेरे साथ चली आई थी
उन्हें देखा तो बहुत दूर तलक सोंच गए
लिखना तो दूर मेरे हाँथ तक थे मोच गए
तभी ख्याल हुआ ये तो न मिल पाएगी
कुछ करो यार नहीं ज़िन्दगी भी जाएगी
फिर आँख बंद और कागज़ को खोल दिया
ज़िन्दगी मौत बीच हांथो को छोड़ दिया
मेरे दिल के दिमाग में जो भी आया था
मैंने हांथो की मदत से वोही लिखाया था
फिर मेरी मौत का सामान कब छिना मुझसे
कुछ भी तो याद नहीं मुझको बस सिवा उसके
अभी यमदूत का भी एक रोल आना था
मेरा लिखा जो पास उसके तो पहुचाना था
बिना रिटेक के ये शाट भी पूरा था हुआ
अब मेरी ज़िन्दगी से उनका सामना था हुआ
कुछ एक देर तो कागज़ पे निगाह गाड़ी थी
फिर एक लोच भरी मेरे पे भी डाली थी
मैं इधर ज़िन्दगी और मौत बीच जूझ रहा
और इस घडी में वो कागज़ था उन्हें सूझ रहा
फिर तो चेहरे पे मुस्कराहटो के फूल खिले
और एक जड्चेतना के बाद इधर हम भी हिले
मेरी करतूत शायद उनके दिल को भाई थी
मेरी करनी ने मेरी ज़िन्दगी बचाई थी
उनकी तारीफ समझ "दीप" के न आई थी
खुदा का शुक्र जो तस्वीर ही बनायीं थी

जब कभी..

ज़िन्दगी में जब कभी
खुशियों का मौसम आएगा
साथ न होने का तेरे
गम बहुत तड्पाएगा

तू किसी को न मिल
तो सब्र कर सकते हैं हम
गैर की वाहों पर
देखा तुझे न जाएगा

कितनी यादें है जुडी
उस एक चहरे से मेरी
आईने में भी मुझे
चेहरा नज़र वो आएगा

दिल से बढ़कर अब मेरी
रग रग में हैं तू बह रही
और भी मुश्किल तुझे
अब भूलना हो जाएगा

ज़िन्दगी में जब कभी...

न मिला..

ऐसा तो नहीं है की
फिर प्यार न मिला
हाँ चाहत थी जिसकी
वो यार न मिला
ये सपनो की दुनिया
तो अब भी चल रही है
हाँ ख्वाब कोई वैसा
यादगार न मिला
इतना क्या कम है की
दिल में बस गए
क्या हुआ जो रिश्तों का
तार न मिला
ये जीना भी कोई
क्या जीना है कोई
जो रह रह के दर्द
बार बार न मिला
अब ये भी मुकद्दर का
लिक्खा ही समझ लेंगे
जो शख्स मिला हमको
बफादार न मिला
हैरत की बात "दीप"
है ये कायरों की दुनिया
दुश्मन भी मिला हमको
तो दिलदार न मिला

Monday, August 16, 2010

रंगे मोहब्बत..

हाँ ये सच है की गिर के सम्हल जाते हैं
कोई कम कोई ज्यादा बदल जाते हैं
वक़्त और दूरियों से ये हल्के सही
पर कहीं रंग मोहब्बत के धुल जाते हैं

कुछ पुरानी से यादें उभर आती हैं
फिर वही सारे अरमाँ मचल जाते हैं
तेरी खुशबू से लगता है तू हैं यहीं
हम अँधेरे में कुछ दूर चल जाते हैं

साथ गुजरे दिनों की जो आती है याद
इस कदर दीप अब भी तड़प जाते हैं
इस भरम में की आगे तू मिल जाएगी
हम अकेले सड़क पर निकल जाते हैं

Thursday, August 12, 2010

जरा सी दूरी

और जरा सी दूरी दरम्यान रह गयी
कहते कहते दिल की दास्तान रह गयी

कब ये हो की तुम मेरी बाँहों में यूँ आ जाओ
के हम बोले किस्मत मेहरबान हो गयी

कम दूरी पे और भी मुश्किल है दिल को समझाना
धड़कन कहती है थोडा सा और करीब आ जाना
कशमकश में ऐसे हे तो शाम हो गयी
और जरा सी दूरी दरम्यान रह गयी

हाँथ में तेरा हाँथ लिए मैं सपनो में खो जाऊं
ऐसी दुनिया से जल्दी फिर लौट के मैं न आऊं
हसरत लगता है जैसे अरमान हो गयी
और जरा सी दूरी दरम्यान रह गयी

याद आई है..

कई बहती हुई आँखों को छोड़कर हमने
गाँव से शहर में आने की सजा पायी है

अब ये जाना की वो मिट्टी की दीवारें थी सही
पत्थरों से जो दिलो जाँ पे चोट खायी है

रौशनी के लिए मशहूर ये शहर शायद
दिलों ने हाँ पर अंधेरों से मात खायी है

है बड़ा इस कदर मकान कुछ खबर ही नहीं
हर तरफ देखिये तन्हाई बस तन्हाई है

सोंचते थे खरीद लेंगे है खोया जो भी
अब ये जाना की "दीप" चीज़ क्या गवाई है

कोई छिपकर वहां रोया था हमारी खातिर
यहाँ तो दोस्ती का नाम बेवफाई है

आज कुछ यूँ हुई तबिअत की नमी आँखों में
फिर वोही झोपडी मिट्टी की याद आई है

Friday, July 30, 2010

खता..

तुम्हे चाहने की खता कब हुई
मोहब्बत हमारी जवाँ कब हुई
है मुझको ये बिलकुल खबर ही नहीं
तू जीने की मेरी वजह कब हुई

तेरे हुस्न का है ये जादू चला
ये दुनिया महेकता जहाँ कब हुई
है आलम ये रातों का अब आजकल
पता ही नहीं की सुवह कब हुई

मिलना बिछड़ना तो तकदीर है
सब पे मुई मेहरबान कब हुई
यादों में इतना समायी है तू
पल भर भी हमसे जुदा कब हुई

Saturday, June 26, 2010

कहाँ गए ...

दिल ढूँढता है आज वो ज़माने कहाँ गए
दिन रात की वोह मस्ती और फ़साने कहाँ गए

बाटें किसी से गम और ख़ुशी दिल तो है चाहता
एक दूसरे से मिलने के बहाने कहाँ गए

यूँ तो बहुत है भीड़ पर हर कोई अकेला
लगते जहाँ थे मेले वो ठिकाने कहाँ गए

अब दोस्ती का मतलब नहीं आसां हैं समझना
अपनों से बेहतर थे जो बेगाने कहाँ गए

Friday, May 28, 2010

तेरी याद..

तेरी याद थमी बरसात सी लगती है
किसी बेचैन रूह के एहसास सी लगती है
यूँ तो कहते हैं लोग तनहा हमे
मुझे तो हर कदम तू साथ सी लगती है

करोगे किस तरह नसीब अब जुदा हमको
अब जुदाई भी मुलाकात सी लगती है
यूँ तसब्बुर में उनकी हसरतों का बस जाना
कैद भी अब मुझे आज़ाद सी लगती है

इस मोहब्बत को नहीं अब कोई सजा बाकी
कज़ा भी अब मुझे हयात सी लगती है
ज़िन्दगी की शहर जुदा उनसे
नफस भी "दीप" को तलवार सी लगती है

* कज़ा = Death
* हयात = Life
* नफस = Breathe

Thursday, May 27, 2010

डूबती कश्ती...

डूबती कश्ती हमे मिलके बचाना होगा
फिर वही किस्से नयी धुन में सुनाना होगा

आज फुर्सत ही कहाँ खुद की गमें उलझन से
अबके वारिश में यहाँ कौन नहाना होगा

बात बीती की पडोसी के यहाँ जाते थे
अब तो शायद ही कभी हाँथ मिलाना होगा

ये मोहब्बत जो कभी दिल की बात होती थी
हैसियत देख के अब दिल भी लगाना होगा

कुछ तो बांकी हो शराफत की शाख दुनियां में
लफ्ज तहजीब के बच्चों को सिखाना होगा

आज सम्हले नहीं गर फिर तो भरोसा है हमे
"दीप" कुछ और दिनों का ये जमाना होगा

डूबती कश्ती हमे मिलके बचाना होगा.

Wednesday, May 26, 2010

ख्वाब..

चाहत की ख्वाइश तो थी ही नहीं
पहेले कभी वो मिली ही नहीं
बस मुस्कराहट के कायल थे हम
फिर होंटों पे उसके खिली ही नहीं

कई रोज़ बीते मुलाकात को
ये हसरत तो अब तक मिटी ही नहीं
कहीं इसका तूफाँ इरादा न हो
ये हलचल जो अबतक थमी ही नहीं
इशारा तो उसने किया था जरूर
पर दूर जाकर मुड़ी ही नहीं
ये मौसम ही शायद रहा बेरुखा
हवाओं में बिलकुल नमी ही नहीं

वो किस्सा बाज़ारों में हर शाम आम
कहानी जो अबतक बनी ही नहीं
मोहब्बत नहीं वो तो एक ख्वाब था
ज़माने ने मेरी सुनी ही नहीं

जुदाई..

अब नहीं गम तेरी जुदाई का
दर्द हल्का हाँ मगर है बेवफाई का

कभी सोंचा न किये थे रहे उल्फत में
इस कदर गमजदा अंजाम आशनाई का

वो बड़े खुश हैं नए घर में ऐसा लगता है
शुक्रिया दोस्त मेरी हौसला अफजाई का

खुद की हालत पे हमे आज रंज आता है
ये सिला खूब मिला हमको रहनुमाई का

यूँ तो जाता रहा सबकुछ ही खैर देखेंगे
ये भी मंजूर मुझे फैसला खुदाई का

* उल्फत = love = प्यार
* आशनाई = love affair
* हौसला अफजाई = encouragement
* रहनुमाई = patronage

अच्छा हुआ..

रिश्ता ही नहीं था जो कहें दिल दुखा गया
वो शख्स हमे फिर भी बहुत कुछ सिखा गया

घर हसरतों अरमान का तो ढह गया लेकिन
ये हादसा मिटटी को परखना सिखा गया

ठोकर तो लगी हाँ मगर आये तो होश में
छोटा सा जख्म गिर के सम्हलना सिखा गया

शिकवा करे कितना भी सिकायत करे हजार
वो बेरुखी से प्यार का मतलब सिखा गया

अब याद तो आएगी "दीप" प्यार किया था
अच्छा हुआ जो दर्द से लड़ना सिखा गया

Wednesday, May 19, 2010

ज़िन्दगी..

एक अनजानी अजनवी सी आस है ज़िन्दगी
कभी खुद से दूर कभी पास है ज़िन्दगी
बस कहने को खड़े हैं हम दरिया के किनारे
पल पल बढती हुई प्यास है ज़िन्दगी

इस तपती हुई धूप में कोई कितना चलेगा
मंजिलों के हैं सिलसिले और तलाश है ज़िन्दगी
अपने और कितने बेगाने हैं यहाँ
उलझे हुए रिश्तों का जाल है ज़िन्दगी

हांसिल नहीं जिनको एक पल का सुकून
कहते हैं वो खूबसूरत ख्याल है ज़िन्दगी
नादाँ हैं वो दीप जिनको सबकुछ पता है
लम्हा दर लम्हा एक कयास है ज़िन्दगी

* कयास = अंदाज़ा = अनुमान = Guess

आजमा के देखो..

ज़िन्दगी है खूबसूरत आजमा के देखो
दिल के कोने में हमको बिठा के देखो
तुम्हारे लिए ही खुली हैं ये बाहें
कभी इनमे खुद को भुला के देखो

तसल्ली मिलेगी यकीं है हमारा
करीब इतना आओ दिल मिला के देखो
हसरतों की यूँ कोई इन्तेहाँ नहीं होती
साथ होने का बस लुत्फ़ उठा के देखो

बहुत कुछ है हममे बहुत कुछ है तुममे
नहीं है जो उसको भुला के देखो
मेरा इस जमाने में सब कुछ तुम्ही हो
मुझे अपना सबकुछ बना के देखो

ज़िन्दगी है खूबसूरत आजमा के देखो ..

Tuesday, May 18, 2010

क्यों है..

इन आँखों को किसी का इंतज़ार क्यों है
थोडा ही सही दिल बेक़रार क्यों है
यूँ तो मौसम साफ़ है और धूप है निकली
फिर भी किसी तूफ़ान का अहसास क्यों है

Wednesday, April 28, 2010

हकीक़त

याद आती है जिनकी वो नाम नहीं लेते
जान जाती है जिनकी आराम नहीं देते
ये दिल की लगी कुछ ऐसी है यारों
सब्र हौसला हिम्मत कुछ काम नहीं देते

अहसास

मोहब्बत में अब तो मज़ा आ रहा है
ख्याल अब हकीकत हुआ जा रहा है
रस्ते में जिसकी झलक देखते थे
वो चलकर हमारी तरफ आ रहा है

Saturday, April 24, 2010

तू जो कहे ...

तू जो कहे तो सुबह को शाम करदूं
तेरे हंसी के लिए रोने का काम करलू
इतना असर है तेरी सक्शियत का मुझ पर
तेरी ख़ुशी के लिए ज़ा भी कुर्बान करदूं

Thursday, April 1, 2010

आज फिर..

आज फिर

आज फिर दिल ने तेरा नाम लिया
आज भी हमने तुझे याद किया
यूँ तो रहती है हरदम साथ मेरे
छूके ख्वावों में बस इजहार किया


इरादा है...

अब दिल में रहने का इरादा है मेरा
आँखों में आसू जमा नहीं होते
याद आये तो बह जाते हैं हम
दिल में रहने वाले जुदा नहीं होते