
तुम्ही बताओ किस तरह तुम्हे प्यार करें
मुश्किल होता गुजारा बिन तुम्हारे दिन-ब-दिन
बरसों से सूखती ये ज़मी कैसे गुलज़ार करें
मुद्दतें हो गयी हैं हसरतों को समेटे
कुछ तो सोंचों और कितना इंतज़ार करें
हद हो गयी है दीप समझाने की दिल को
अब कौन सा बहाना हम खुद से इस बार करें
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