Saturday, April 7, 2012

अब भी..

अब भी तुम्हारी याद किसी सहेली की तरह है
अहसास मानो खाली पड़ी हवेली की तरह है
लगता है ज़ख्म आज भी थोडा तो हरा है
लफ्जो में बयां होती किसी पहेली की तरह है

चाहत कभी जो इस कदर बरसी हो किसी पर
चांदनी में तू खिलती हुई चमेली की तरह है
कोशिश बीते वक़्त की पूरी रही मगर
हर दिन तेरा ख्याल नई नवेली की तरह है

जीना सिखा लिया मगर दिल को कहाँ सुकून
फितरत इसकी आज भी जलेबी की तरह है
नदियों के दो किनारों सी किस्मत है "दीप" की
कहने को है साथ फिर भी अकेली की तरह है

4 comments:

  1. बहुत समर्थ सृजन, बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें.

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  2. संजीदा गजल ... शुक्रिया जी /

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