Wednesday, January 11, 2012

मेरी दुनिया में तुम

मेरे जीवन में तुम रहो रहो
मेरी दुनिया में तुम रहोगे सदा
अब निगाहों में तुम रहो रहो
हाँ ख़यालों में तुम रहोगे सदा

मुददतें हो गई सुने तुमको
फिर भी लगता है बुलाओगे अभी
दौर मिलने का अब नहीं सही
मेरी यादों में तुम रहोगे सदा

कुछ तो लगता है की कम है
कोई जगह तो है ख़ाली जरूर
वक़्त भी धुल नहीं पाए जिसको
लहू में घुलके तुम बहोगे सदा

मेरे जीवन में तुम रहो रहो
मेरी दुनिया में तुम रहोगे सदा

5 comments:

  1. बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें .

    नीरज

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  2. सार्थक प्रस्तुति, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, सादर.
    मेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम प्रविष्टि पर आप सादर आमंत्रित हैं.

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