

देश की राजकुमारी का स्वयंवर था रचा
नौजवां देश के कवियों में था कुछ शोर मचा
ये शर्त थी की जो कविता को वो पसंद करे
उसी कविता के रचयिता से वो शादी भी करे
और तारीफ जो पसंद उसे आई नहीं
कवि समझे की कभी ज़िन्दगी थी पायी नहीं
अपनी तारीफ को सुनने का ढंग निराला था
कई कवियों का आज उसने दम निकाला था
मेरे हिस्से में भी पर्ची तो एक आई थी
कवि के नाम की तख्ती जो कल लगायी थी
बड़ी हिम्मत के साथ हम तो यहाँ आये थे
मगर हालात देख कर बड़ा पछताए थे
अब एक बार उन्हें देखने की ख्वाइश थी
मौत तो आज मेरे साथ चली आई थी
उन्हें देखा तो बहुत दूर तलक सोंच गए
लिखना तो दूर मेरे हाँथ तक थे मोच गए
तभी ख्याल हुआ ये तो न मिल पाएगी
कुछ करो यार नहीं ज़िन्दगी भी जाएगी
फिर आँख बंद और कागज़ को खोल दिया
ज़िन्दगी मौत बीच हांथो को छोड़ दिया
मेरे दिल के दिमाग में जो भी आया था
मैंने हांथो की मदत से वोही लिखाया था
फिर मेरी मौत का सामान कब छिना मुझसे
कुछ भी तो याद नहीं मुझको बस सिवा उसके
अभी यमदूत का भी एक रोल आना था
मेरा लिखा जो पास उसके तो पहुचाना था
बिना रिटेक के ये शाट भी पूरा था हुआ
अब मेरी ज़िन्दगी से उनका सामना था हुआ
कुछ एक देर तो कागज़ पे निगाह गाड़ी थी
फिर एक लोच भरी मेरे पे भी डाली थी
मैं इधर ज़िन्दगी और मौत बीच जूझ रहा
और इस घडी में वो कागज़ था उन्हें सूझ रहा
फिर तो चेहरे पे मुस्कराहटो के फूल खिले
और एक जड्चेतना के बाद इधर हम भी हिले
मेरी करतूत शायद उनके दिल को भाई थी
मेरी करनी ने मेरी ज़िन्दगी बचाई थी
उनकी तारीफ समझ "दीप" के न आई थी
खुदा का शुक्र जो तस्वीर ही बनायीं थी